Sunday, March 4, 2018

अब!

"उठ जा 8 बज गये...पता नही ससुराल जाके इस लड़की का क्या होगा" बाबा कहते थे।

और वो मुँह पर चादर ओढ़ एक और सपना देख लेती थी ...

"अरे कुछ बनाना सीख ले...ससुरालवालों को क्या खिलाएगी" माँ कहती।

"माँ तीखी चटनी नहीं बनाई.... सिर्फ दाल सब्ज़ी?" वो कॉलेज से आकर टीवी के सामने टांगे पसारे खाना खाते खाते शिकायत करती थी

"You look so beautiful in black" ऑफिस की फेयरवेल पार्टी में किसीने कॉम्प्लिमेंट किया था।

और उसने अपने बेबाक अंदाज़ में कहा था "Thanks! But tell me something new" और सबके साथ ठहाके लगाकर हंसी थी।

वो जो मन का कहती थी, मन का पहनती थी, ज़िन्दगी को जैसे जीना सिखाती थी, खुली हवाओं में खुलकर सांस लेती थी...

वही आजकल सपनो को बीच मे छोड़, 5 बजे के अलार्म पर उठ जाती है... नहाकर, पूजा कर सबको चाय देती है।

सास ससुर के स्वाद का बिना मसाले का खाना बनाती है और चुपचाप डाइनिंग टेबल पर बैठकर वही खाती है।

"बहु हमारे यहाँ ब्याहता औरतें काला या सफेद नहीं पहनती" शादी के दूसरे दिन मिली हिदायत को रोज़ अलग अलग रंग की साड़ियां पहनकर निभाती है।

अब वो मन का नही खाती, मन का नही पहनती, मन का नही जीती.. रसोई में बन रहे खाने के धुएँ में बस सांस लेती है।

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