Friday, March 30, 2018

हो सकता है!

हो सकता है कि तुम एक मुखौटा पहनकर,
साधु के वेश में फिर एक बार सीता को ठगों।

हो सकता है कि तुम मीठी बातों से, सादे नैनो से
एक बार फिर शिव से वरदान मांग उन्हीं को भस्म करने के लिए भागो।

हो सकता है कि तुम आधा राज्य देने का वचन दे
लाक्षागृह का षडयंत्र एक बार फिर से साधो।

हो सकता है कि तुम अपनी तरफ बढ़ते हुए हाथों को थाम साथ चलने की अपेक्षा
उन्हें काटकर अपना कंटीत पथ उन फूलों जैसे हाथों से सजा दो।

हो सकता है कि तुम अपने हितैषियों के प्रेम को सीढ़ी बना
नभ की बुलंदियों को छू दो....

हो सकता है कि तुम छल से सफलता पा भी लो
हो सकता है....

पर ये भी हो सकता है कि तुम....
जब भी दर्पण देखो....
तो धिक्कारते अपने प्रतिबिंब की चीखों से जागो।
और अपना मुखौटा हटा, राम का तीर अपने नाभि पर लिए प्रायश्चित का भंवर बांधो।

मैं उस पल की प्रतीक्षा करती हूँ।
तुम्हारी सोई हुई चेतना को, उस पल तक के लिए, क्षमा करती हूँ!

- मानबी कटोच

(अपने एक सहकर्मी को समर्पित जो अब भी मुखौटा पहन न जाने किस किस को छल रहा है! )
दस सिर वाले रावण से रणभूमि में तो लड़ा जा सकता है पर साधू के भेस में आये रावण का क्या किया जाए?

Tuesday, March 13, 2018

कल सुबह।

ये जो तुम मुँह फेर कर
बिना बोले बिना माने
गुस्से में यूं सो जाते हो
सोचो...
सुबह हो... और मैं तुम्हे मनाने के लिए
फिर कभी न उठ पाऊं तो????

Sunday, March 4, 2018

अब!

"उठ जा 8 बज गये...पता नही ससुराल जाके इस लड़की का क्या होगा" बाबा कहते थे।

और वो मुँह पर चादर ओढ़ एक और सपना देख लेती थी ...

"अरे कुछ बनाना सीख ले...ससुरालवालों को क्या खिलाएगी" माँ कहती।

"माँ तीखी चटनी नहीं बनाई.... सिर्फ दाल सब्ज़ी?" वो कॉलेज से आकर टीवी के सामने टांगे पसारे खाना खाते खाते शिकायत करती थी

"You look so beautiful in black" ऑफिस की फेयरवेल पार्टी में किसीने कॉम्प्लिमेंट किया था।

और उसने अपने बेबाक अंदाज़ में कहा था "Thanks! But tell me something new" और सबके साथ ठहाके लगाकर हंसी थी।

वो जो मन का कहती थी, मन का पहनती थी, ज़िन्दगी को जैसे जीना सिखाती थी, खुली हवाओं में खुलकर सांस लेती थी...

वही आजकल सपनो को बीच मे छोड़, 5 बजे के अलार्म पर उठ जाती है... नहाकर, पूजा कर सबको चाय देती है।

सास ससुर के स्वाद का बिना मसाले का खाना बनाती है और चुपचाप डाइनिंग टेबल पर बैठकर वही खाती है।

"बहु हमारे यहाँ ब्याहता औरतें काला या सफेद नहीं पहनती" शादी के दूसरे दिन मिली हिदायत को रोज़ अलग अलग रंग की साड़ियां पहनकर निभाती है।

अब वो मन का नही खाती, मन का नही पहनती, मन का नही जीती.. रसोई में बन रहे खाने के धुएँ में बस सांस लेती है।