Friday, December 30, 2016

तू किसी रेल सी गुज़रती है

तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।

याद आया ये किसकी कविता है?
आप कहेंगे, "कविता?..ये तो मसान फिल्म का गाना है।"
पर क्या आप जानते है कि वरुण ग्रोवर के लिखे इस गाने की पहली दो लाइने जो आप सबसे ज़्यादा गुनगुनाते है वो कवि दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल से ली गयी है।

अभी हाल ही में 'हिंदी कविता' नामक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल पर दुष्यन्त कुमार की पोती ने इस कविता को पढ़ा। पर पढ़ने से पहले ये नहीं कहा कि ये उस दुष्यन्त कुमार की कविता है जिसने ऐसी कई खूबसूरत कविताएं लिखी है। दुष्यन्त कुमार को हमसे मिलवाने के लिए उनकी पोती को मसान का सहारा लेना पड़ा। कहना पड़ा कि ये जो गाना आप लोगो को पसंद आया, ये दरअसल मेरे दादा की कविता है जिसे तब तक अपनी अलग पहचान नहीं मिली जब तक बॉलीवुड ने इसे अपनी एक फिल्म में जगह नहीं दे दी।

कैसी विडम्बना है न हम जैसे कवियों की ...हमारी कविताओं की। हम तब तक गुमनाम रहते है जब तक हम गुलज़ार या जावेद अख्तर नहीं बन जाते या फिर हमारे मरने के कई साल बाद कोई कवि ,कोई गीतकार हमारी कविता के कुछ अंश लेकर किसी फिल्म का गाना नहीं बना देता।

खैर! आज दुष्यन्त कुमार की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए... आईये सुनते है उनकी ये कविता, जो वास्तव में कुछ इस प्रकार है -

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ 

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ 

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

Saturday, December 17, 2016

कभी कभी माँ बहुत उदास होती है!

कभी कभी माँ बहुत उदास होती है
कुछ कहती नहीं ...बस चुपचाप होती है
कभी कभी माँ बहुत उदास होती है।

बहुत पूछने पर धीमे से कहती है
आज जोड़ो का दर्द तेज़ है..
और कोई बात नहीं।

तू सुना...मुन्नी स्कूल गयी?
तूने नाश्ता किया?
दामाद जी टूर से लौटे?
कई सवाल एक साथ कर लेती है
कभी कभी माँ बहुत उदास होती है।

बाबा की सेवा, घर की सफाई,
मेहमानों से बातचीत, डॉक्टर के चक्कर
इन सबसे फुर्सत मिलते ही मुझे फ़ोन लगाती है
कभी कभी माँ बहुत उदास होती है।

कुछ कहती नहीं..बस चुपचाप होती है
कभी कभी माँ बहुत उदास होती है।

Monday, December 12, 2016

दांत का दर्द

मेरे दांत में काफी समय से दर्द था। असहनिय तो नहीं था पर एक लंबे समय से इस एक सार दर्द से मैं ऊब चुकी थी। हारकर आखिरकार डॉक्टर के पास गयी। पर डॉक्टर ने जानबूझकर कहिये, अनजाने में मानिये या फिर गलती से मेरे दांतो का और बुरा हाल कर दिया।
दर्द अब असहनीय हो चूका था। कई महीनो तक इस दर्द के साथ रहने के बाद आखिर एक दिन उस दांत को निकलवाना पड़ा।
आजकल एक और दांत में दर्द है। पर पिछले का ज़ख्म अभी तक भरा नहीं.... मुझे अब डॉक्टर के पास जाने से खौफ आता है।

Wednesday, December 7, 2016

परिंदा!

कभी कभी जो ख्वाहिश आसमान में उड़ते हुए परिंदे को देखकर होती है, अक्सर दूर से किसी की ज़िन्दगी को देखकर वैसी ही एक ख्वाहिश होती है। कि काश मैं उसकी तरह ऊंचा उड़ पाता। कि... वाह क्या उड़ान है उसकी... क्या ज़िन्दगी है। न रोक न टोक... न ज़िम्मेदारियाँ .. न मजबूरियां... बस जहाँ दिल करे, जब दिल करे उड़ते रहो...
पर वही परिंदा शायद आपको देखकर सोचता हो... कि वाह! क्या लाइफ है बन्दे की... न खाने की तलाश में जगह जगह उड़ते रहने की टेंशन.. न घरोंदा बनाने के लिए तिनको की