Saturday, September 24, 2016

अभी बहोत कुछ करना था!

अभी बहोत कुछ करना था...

ढेरो कवितायें लिखनी थी

रेडियो पर बोलना था

टी.वी पर भी आना था

इक किताब अधूरी सी...वो भी लिखनी थी

ग़ज़लो की किताब छापनी थी

अभी बहोत कुछ करना था...

पर छोटा था वो...उसे छोड़कर जाती कैसे
मैं माँ थी... अपने बच्चे को रुलाती कैसे।

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