Thursday, September 29, 2016

डूब मरो!

वो कहते है "तुम डूब मरो"
पर ऐसे कैसे मर जाऊं?

ऐसे कैसे मर जाऊं माँ जब तक तुम ज़िंदा हो
जब तक बाबा मर नहीं जाते, ऐसे कैसे मर जाऊं?

मेरे मारने की खबर सुनकर बाबा को फिर अटैक आ गया तो?
घुट घुट कर जी रही हो पर मेरी लाश देख तुम्हारा दम ही घुट गया तो

बोलते है तो बोलते रहे कि डूब मरो
ऐसे कैसे मर जाऊं...जब तक तुम ज़िंदा हो।

भाई-भाई का खेल!

तू मुझको सता कर खुश है..

मैं तेरी तकलीफ में सूकून पाता हूँ....

भाई-भाई के इस खेल में माँ ने आंसू बहाये है बहोत।

- मानबी

तलाश!


तलाश-ए-जुस्तजू में बीती उम्र सारी

वो जो मेरा था, उसकी तलाश कब थी मुझे

वो जो मेरा न हुआ उसको ढूंडा किये उम्र भर

-मानबी

Wednesday, September 28, 2016

काश मैं तुम जैसी होती।

काश मैं तुम जैसी होती।

तुम ...जिसे सिर्फ अपने मान अपमान से वास्ता है।

तुम.... जो अपमान होने पर झट से कह देते हो कि नहीं जाऊंगा वहाँ।

तुम ... जो माफ़ी मांगे जाने पर मान जाते हो।

तुम... जो दुबारा अपमानित होने चले भी जाते हो।

काश मैं तुम जैसी होती।

मैं... हाँ मैं जो तुम्हारे अपमान को अपना समझ बैठती हूँ

मैं ... जो वहाँ नहीं जाती जहाँ तुम नहीं जाना चाहते हो।

मैं... जो समझती हूँ कि तुम भी ऐसा ही सोचो।

पर तुम ...तुम तो 'मैं' नहीं हो न।

तुम.. जिसे सिर्फ अपने मान अपमान से वास्ता है।

काश मैं तुम जैसी होती।

Saturday, September 24, 2016

अभी बहोत कुछ करना था!

अभी बहोत कुछ करना था...

ढेरो कवितायें लिखनी थी

रेडियो पर बोलना था

टी.वी पर भी आना था

इक किताब अधूरी सी...वो भी लिखनी थी

ग़ज़लो की किताब छापनी थी

अभी बहोत कुछ करना था...

पर छोटा था वो...उसे छोड़कर जाती कैसे
मैं माँ थी... अपने बच्चे को रुलाती कैसे।

क्या ऐसा नहीं हो सकता?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि न तुम बदलो न मैं?
और फिर भी रहे हमारा प्रेम...अटूट, अडोल और अमर?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि श्रावण में मैं मांस खाऊ,
और तुम उपवास करते रहो

हर एकादशी पर तुम चाहो तो पाठ करो
और मैं पार्लर जाऊं

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम्हारी माँ सारे उलाहने तुम्हे दे
और मेरी माँ सारी खातिरदारी मुझे?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं तुम्हे तुम्हारे तौर से जीने दूँ
और तुम मेरी जीवनशैली का मान करो

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम ये कहना बंद करो
कि 'हमारे यहाँ ऐसा होता है'।

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं कहूँ कि 'मैं ये नहीं करना चाहती'।

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि न तुम बदलो न मैं..
और फिर भी रहे हमारा प्रेम...अटूट..अडोल और अमर?

Friday, September 23, 2016

महंगाई!

महँगी थी तभी तो किसी किसी की हुई..

ये वफ़ा थी..शादी नहीं जो हर कोई कर ले!

इंसान!

सूखे का मौसम है तुम पानी न मांग लेना मुझसे

ताज़ा ताज़ा इंसान बना हूँ मैं,

कही लहू ही न पी लूँ तेरा!

- मानबी

मुश्किल

हर तरफ प्यार था, मुहब्बत थी, मदहोशी थी..

बस #मुश्किल ये थी कि इक ख्वाब था वो, जो अब टूट गया।

- #मानबी

#मुश्किल  से किया पानी का इंतज़ाम सियासतदारों ने..

सुखा पड़ा तो खून से भर दी नदियां।

-मानबी

आसान!

जब सो गए.. तो क़त्ल कर दिया उनका,

जागती ख्वाहिशों को यूँ मारना #आसान न था।

- मानबी

Wednesday, September 14, 2016

हिंदी दिवस!

लो! ख़त्म हुआ हिंदी दिवस।
और ख़त्म हुई हिंदी पर बहस।

22 राजभाषाये है.. तुम हिंदी दिवस ही क्यों मनाते हो?
बाकी 21 माइनॉरिटी में है, इसका फायदा उठाते हो?

अच्छा एक बात बताओ,
आखिर क्यों मिले हिंदी को इतना भाव?

दो चार गालियाँ छोड़ दो तो हिंदी में क्या रखा है?
वो हिंदी से क्यों इंप्रेस हो, जिसने अंग्रेजी चक्खा है।

अब तो हिंदी दिवस की बधाई भी "हैप्पी हिंदी डे" कहकर दी जाती है,
हिंदी का जन्मदिन समझकर, अंग्रेजी मोमबत्ती बुझाती है।

पर हिंदी है कोई लौ नहीं, जो बुझ जाए इस तरह भाई
इनके रक्षक ढेरों है..प्रेमचंद, बच्चन और परसाई।

जिसको हिंदी नहीं बोलनी, वो न बोले, कोई बात नहीं।
इसको बचाने की कोशिश किसी भाषा पर आघात नहीं।

हिंदी बोलो न बोलो, बस, उसका सम्मान करो ये आशा है।
तुम्हारी न सही.. ये तुम्हारे ही किसी भाई की.. मातृभाषा है।

Monday, September 5, 2016

मेरी किताब

कई बार सोचा, एक किताब लिखूं। कितनो ने सलाह भी दी, "आप किताब क्यों नहीं लिखती?" पर जब कभी ये ख्याल मन में आता तो बस एक ही कहानी नज़र आती- कहानी उन 6 महीनो की, वो 6 महीने जिन्होंने मुझे बिल्कुल बदल दिया। जिनकी वजह से आज 6 साल बाद भी मैं दुबारा पहले जैसी नहीं बन पाती।
अब कोई कुछ नहीं कहता पर वो बातें आज भी सुई की मानिंद चुभती है। अब ये काम में हाथ भी बटाते है पर वो राते अब भी याद आये तो सिहर सी उठती हूँ।
पर फिर रुक जाती हूँ। ज़ख्मो को बड़ी मुश्किल से एक परत सी लगाकर ढक सा रखा है। ये परत खोल दूंगी तो सारे ज़ख्म उसी तरह ताज़ा, लहूलुहान मिलेंगे।