Sunday, March 6, 2016

रिफ्यूजी

"वो लोग मामा के घर में घुस चुके थे। सब भागने लगे... मैं भी भागा.... । मामा का घर 3 गाँव छोड़कर था, हम भागकर ही पहुँच जाते थे, जब मन करता। पूरा रास्ता याद था पर उस दिन मैं डर गया था..कुछ 11-12 साल का था मैं तब। भागते भागते नदी किनारे पहुँच गया पर कच्ची पुल पर से चलने में डर लगने लगा... इतने में दादा (मामा का बेटा) ने पीछे से आकर मुझे पकड़ लिया और मुझे घर पहुंचा दिया। कुछ दिनों बाद वो लोग हमारे गाँव में भी आ गए। लोगो को चुन चुन के मारने लगे। औरतो को उठाकर ले जाने लगे। हम सब छोड़कर भाग आये।" - बाबा

मेरे बाबा उन सैंकड़ों बच्चों में से एक थे जिन्हें बांग्लादेश की आरामदायक ज़िन्दगी को रातो रात छोड़कर भारत में रिफ्यूजी की तरह भाग आना पड़ा। आज भी उनकी पहचान रिफ्यूजी की तरह की जाती है। बांग्लादेश में ज़मींदारों की तरह रहने वाले इन लोगो को महाराष्ट्र के सबसे बंजर इलाके में 5 -5 एकड़ ज़मीन दे दी गयी। बिना किसी आरक्षण या सहूलियत के इन सभी लोगो ने अपनी ज़िन्दगी एक बार फिर शून्य से शुरू की।

पर आज जितने भी रिफ्यूजी बंगालियों को मैं जानती हूँ उनके बच्चे अपनी मेहनत से पढ़ लिखकर सबके बराबर खड़े होते है।

इस समुदाय ने न तो कभी आरक्षण माँगा और न ही इस बात का हवाला दिया कि उन्हें रिफ्यूजी समझकर उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

मैंने कई बार बाबा को अपने बांग्लादेश के दिनों को याद करते हुए सुना... उनपर हुए अत्याचारो की कहानियां सुनी पर आज तक कभी भारत के खिलाफ कुछ भी कहते नहीं सुना।

मूलतः बांग्लादेशी होते हुए भी उन्हें अपने भारतीय होने पे उतना ही गर्व था और है जितना किसी भी भारतीय को होना चाहिए।

वे सुभाष चंद्र बोस के भक्त रहे... उनके गुम होने के लिए महात्मा गांधी और नेहरू से नफरत करते रहे पर उन्हें भारत से कभी कोई शिकायत नहीं थी। उन्होंने या उनके साथ आये रिफ्यूजी परिवारो ने कभी भारत विरोधी नारे नहीं लगाये।

हम सभी समझते थे कि आरक्षण एक राजनितिक खेल है, जो कभी ख़त्म नहीं हो सकता। चाहे कोई भी राजनीतिक पार्टी आ जाये.. न आरक्षण बदलेगा न समानता आएगी इस देश में। पर इस असामनता के बीच, रिफ्यूजी होने की हीनता लिए और खाली जेबो को लिए हम संघर्ष करते रहे। और तब तक नहीं रुके जब तक लोगो को हमारी शिक्षा और सामाजिक स्तर से हमारा इतिहास भूल जाना पड़े।

हमने भारत से आज़ादी नहीं मांगी... हम भारत में रहकर, भारतीय बनकर वहां पहुचे जहाँ भारत को हम पर गर्व हो... जहाँ भारत पर हम आरक्षित बनकर बोझ नहीं बल्कि सक्षम बनकर उसकी प्रगति के प्रतीक बने।

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