Friday, October 9, 2015

दादरी का सच कौन जानता है???


#dadri #beeflynching #akhlaq ये सब ट्रेंडिंग है। जी हाँ जिन खबरों पर हम कभी शोक मनाया करते थे आज उनपर हम सिर्फ इसीलिए लिखना चाहते है क्योंकि वो ट्रेंडिंग है।

नहीं मैं यहाँ हर अखबार... हर न्यूज़ चैनल की तरह इसे हिन्दुओ के मुसलमानो पर हुए अत्याचार के प्रचार के रूप में दिखाने के लिए नहीं आई हूँ।

इसलिए यदि आप उनमे से है जिनका अख़लाक़ से दूर दूर तक कोई वास्ता नही, उसे मारने वालो का पता नहीं या दादरी का नाम ज़िन्दगी में पहली बार सुना हो और फिर भी आपको लगता है कि इस पूरी घटना के बारे मे आपसे बढ़कर ज्ञानी कोई नहीं है तो आगे पढ़ने का कष्ट न करे।

दादरी! ये नाम मैंने अपने जीवन में दूसरी बार तब सुना जब मिडिया ने बताया की ठीक बीफ बैन होने की घटना के बाद, ठीक बिहार के इलेक्शन से पहले, ठीक उस समय जब हिन्दू और मुसलमानो की एकता को तोड़ने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब दादरी में रहने वाले मोहम्मद अख़लाक़ को बीफ याने गाय का मॉस खाने की वजह से उसी के हिन्दू पड़ोसियों ने पीट पीट के मार डाला।

पर दादरी का नाम मैंने पहली बार तब सुना था जब मैं ग्रेटर नॉएडा के आम्रपाली नामक सोसाइटी में रहती थी।

दादरी गाँव इस सोसाइटी के बेहद पास था और इसलिए सभी गार्ड जो यहाँ तैनात थे इसी गाँव से आते थे।

इन चौकीदारों में से कौन हिन्दू था और कौन मुसलमान, मुझे नहीं पता। पर हर कोई साथ बैठकर खाना खाता था। एक वाक्या मुझे अब तक याद है। इसी सोसाइटी के एक दूसरे बिल्डिंग में रहने वाली मेरी एक सहेली ने मुझे कई बार बताया था की उनके बिल्डिंग का गार्ड बहोत सज्जन है। कई बार उसने, उसकी मदत की है। एक बार जब मैं उस बिल्डिंग में गयी तो मैंने देखा की वह गार्ड विवेकानंद की किताबे पढ़ रहा है।
पूछने पर उन्होंने बताया कि सारा दिन यूँही बैठे रहने से अच्छा वे किताबे पढ़ना पसंद करते है। और उन्होंने विवेकानंद की कई किताबे पढ़ी है। ये सुनकर एक बात समझ आई की हम अक्सर किसी भी काम करने वाले के या किसी भी जगह पर रहनेवाले के प्रति एक धारना बना लेते है। लेकिन ज़रूरी नहीं कि हमारी सभी धारणाये सही हो। गार्ड की नौकरी करने वाला व्यक्ति पढ़ने का शौक़ीन होगा, स्वामी विवेकानंद का भक्त होगा इसकी हम कल्पना भी नहीं करते। दादरी जैसे गाँव में रहनेवाला एक साधारण इंसान इतना ज्ञानी होगा इसका हम कभी विचार भी नहीं करते।
दादरी में रहनेवाले ये सभी लोग... या इन जैसे हमारे और आप ही की तरह के लोग क्या इतने जाहिल है?
मुझे यकीन नहीं होता।

एक गाय का खो जाना, एक अफवाह का फैलना, मंदिर में अनोउंसमेंट होना और एक घंटे के अंदर हज़ार लोगो का जमा होकर बिल्कुल एक ही तरह एक ही दिशा में सोचना और फिर उस सोच को बिना किसी भी विरोध के अंजाम दे देना...... क्या कुछ भी संदेहांस्पद नहीं लगता?

हम में से हर कोई... चाहे हिन्दू हो या मुसलमान इस बात को शर्मनाक घटना मानता है। तो दादरी में रहनेवाले लोगो में ऐसा क्या अलग है जो उनकी सोच हमारी सोच से इतनी अलग हो गयी और वो भी एक घंटे के भीतर?

आप अपने आप को उस भीड़ का हिस्सा मानकर सोचे। क्या आपके विचार एक घंटे में बदल जाते? क्या किसी अनोउंसमेंट के चलते आप अपने ही पडोसी को मार देते? क्या आप सिर्फ इसलिए एक खुनी बन जाते क्योंकि 999 लोग आपको खुनी बनाना चाहते है?

दादरी से 1500 किमी दूर यहाँ चेन्नई में बैठकर मैं इस बात पर कोई टिपण्णी नहीं करना चाहती की वहां क्या हुआ होगा। पर हाँ इतना ज़रूर कहना चाहती हूँ की कानो सुनी बात अक्सर सच नहीं होती।

बरसो से हमारे देश में हम अपनी अपनी पसंद का खाना खाते आ रहे है.... फिर अचानक ऐसा क्या हो गया जो हम इतना बदल गए? या फिर हम नहीं... कुछ और ही बदला है?

बरसो तक हिन्दू और मुसलमान को लड़ाकर अंग्रेज़ हम पर राज करते आये थे। पर देश के लूट जाने के बाद हमें इस बात की भनक लगी।

कही ऐसा न हो की एक बार फिर हम वही गलती दोहराएं!!!!

3 comments:

  1. Keep it up maann. Jaruri hi sikke k dusray pahluu ko bhi samne laya Jaye. Shabbash

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  2. Keep it up maann. Jaruri hi sikke k dusray pahluu ko bhi samne laya Jaye. Shabbash

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  3. जहां-जहां राजनीति है, वहां-वहां विभाजन की आग पर रोटियां सेकी जाती हैं। डर इस बात का है कि यह राजनीति सामान्य लोगों के मन तक घर बनाती जा रही है। इसका दायरा समाज में निरंतर फ़ैल रहा है। सुरक्षा के लिए अत्यंत घातक सोच पनपने देने में हमारे तथाकथित राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा हाथ है।

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