Thursday, August 20, 2015

Main 'Maa' hu...Mujhe sab kuch nahi milta..

मैं माँ हूँ, मुझे सबकुछ नहीं मिलता...
कभी साँसे नहीं मिलती,
तो कभी समंदर नहीं मिलता।

वक़्त की बाज़ी हारकर रह जाती हूँ अक्सर
वक़्त पे मुझको या घर नहीं मिलता या कैरियर नहीं मिलता

दोनों दुनिया एक ही में समेटूँ किस तरह
कभी अपने ही बच्चों का बचपन नहीं मिलता
तो कभी दफ्तर की तरक्की का बड्डप्पन नहीं मिलता।

घर पर रुक जाऊ तो बेकार समझते है वो मुझे
बाहर निकल जाऊ तो गद्दार कहते है मुझे
दोनों ही तरफ मुझको सुकून नहीं मिलता
मैं माँ हूँ मुझे सबकुछ नहीं मिलता...
कभी साँसे नहीं मिलती,
तो कभी समंदर नहीं मिलता।

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