Friday, June 19, 2015

Kuch Nazm Aapki Nazar 2


अंजाम-ए-मोहब्बत से डरता रहा
खुद मोहब्बत न की, औरो की मिसाले देता रहा
डर था उसे मैं नींदे चुरा लूंगा उसकी
तिजोरियों से निकाल निकालकर नींद लेता रहा
#Manabi

काली घटाओ से तुम खौफ न खाया करो
बारिशो का मौसम है, घर वक़्त पर आया करो :)
#Manabi

ये मसरूफियत ये बहाने सब समझते है सनम।
इश्क़ में पहले भी भूले जा चुके है कोई नयी बात नहीं।
#Manabi


मेरे बगैर तन्हा रहने की शिकायत करता रहा।
गैरो की महफ़िल में न जाने किसकी खातिर जाता रहा।
#Manabi


मेरे ख्वाबो में तन्हा आनेवाले
लगता है तुझको मेरी नियत का पता नहीं अब तक
#Manabi



वो कहते थे अपनी पाँव चादर में रखो
आँसमा को चादर समझता था मैं वो ये जानते न थे
#Manabi



पत्थर होता तो जलकर भी साथ निभाता
मोम था मेरा मेहबूब..ज़रा सी लौ से पिघल गया..
#Manabi



फासला इतना रखो की जल न जाओ कही..
मोम हो...मुझसे लिपटने में गल न जाओ कही..
#Manabi




उसकी आँखों में मैं बसता था ताबीर तो होना ही था
मेरी आँखों में ख्वाब बनकर जो रहा हकीकत हो न सका
#Manabi



ग़लतफहमी की यही वजह काफी थी दोस्त
अखबार में अक्सर सिर्फ सूरत छपी तेरी...
नियत ही न छपने पायी
#Manabi



तेरी अपनी हसरत हूँ तेरे दिल के सिवा कही न रह पाउँगा
ठुकरा न मुझको जल्द दिल से निकल हकीकतों में बदल जाऊंगा
#Manabi




भीड़ में रहकर भी न खोने का मज़ा और
अपनी राहो पे रहकर भी भटकने का मज़ा और
#Manabi




रेत का बना हूँ..छूने से डेह जाऊ न कही।
तू मुझे पत्थर समझता है तो पत्थर ही सही।
#Manabi




ताउम्र हिसाब उसके सवालो देता रहा मैं
खुद अपने उधारी का हिसाब माँगा तो रिश्ता बना लिया उसने
#Manabi



हैरानगी है की मुझे जानता भी न था वो
पर सरहद पे जान कर मेरे लिए जान देनेवाला वो अजनबी ही था
#Manabi


खुद पर्दा गिरा के अक्ल पे हमारे
मेहबूब मेरा कहता की हम कुछ नहीं जानते
दर्द के पन्ने पलटकर देखो
फिर कहना की हम कहना नहीं मानते
#Manabi


न मिल मुझसे काली अँधेरी रातो में
डर है मुझे तस्सव्वुर में तू मेरी नींदे न चुराकर ले जाये कही
#Manabi


है तेरे मेरे दरमियान जो
वो अपना राज़ ए ख्वाब है
देखना मेरे हमनफ़ज़ तू किसी को ये बता न दे
#Manabi


मैं उसकी हसरतो का तामील बनने में इतना मशगूल रहा
मेरी चाहत में मरा जाता था वो मुझे मालूम न था।
#Manabi



रातो को सोता न था वो मेरे इंतज़ार में
ख्वाबो में आता रहा मैं उसकी तलाश में
#Manabi



गुफ्तगू तो नहीं बस हाल ही बता देता है वो
सामना रोज़ होता है मगर आइना दिखा देता है वो
#Manabi


आसमाँ पे दिखने लगे है पंछी नए आजकल
लगता है बच्चों को भी अब बड्डपन की तलाश है
#Manabi


मेरी जान से खेलता रहा उम्र भर
मेरे कातिल को अब मेरे दिल की तलाश है
#Manabi


न दोस्तों को न दुश्मनो को ढूंढता हु मैं
कई रोज़ से भूखा हूँ, मुझे रहमदिली की तलाश है
#Manabi


तुम जुगनुओं की तलाश में सितारों को न भुला देना
वो चमकते तो बहोत है, पर जीते नहीं ज़्यादा
#Manabi



कुछ दूर ही सही, तू साथ चलेगा तो निखर जाऊंगा
मुक्कद्दर में न सही, दिल में भी रहेगा तो संवर जाऊंगा
#Manabi


मैं कलम से उनके दिल को छू लूँ न कही
यही सोचकर तलवार उठाये रहते है लोग
#Manabi


नज़दीक जितना भी हो दिल तक न पहोचने पायेगा
तू पहलु में रहे न रहे, दिल से न सरकने पायेगा
#Manabi


अफवाहें तुमने सुनी होंगी मेरे जिंदा होने की
दिल जलाकर कौन जीता रहा है सनम
#Manabi


बिन कुछ पाये लिखनेवाले
अक्सर तुझको पढ़कर सोचता हूँ
तेरे इस न पाने से मैंने क्या कुछ जाना है
#Manabi


कोई किसीकी तरह होता तो मैं जी लेता
किसी भी नाम से हो बस जाम होता तो मैं पी लेता
#Manabi


सदका ए झटको का सफ़र है ज़िन्दगी
जलसा ए हिसाबो की कबर है ज़िन्दगी
#Manabi


मोहब्बत बेशक न करो, नफरत न करना
सोहबत में रहो न रहो यादो में रहना
#Manabi


चाहत पे काश बस मेरा भी होता
मैं फिर यही चाहता की तुझे कोई और चाहता न हो
#Manabi



पत्थर बन गया हूँ तेरे इंतज़ार में
तेरे आने की देर है बस.. दिल के पिघलकर दरिया बनने में
#Manabi


यूँ तो दूर दूर तक नहीं कोई रिश्ता तुझसे ग़ालिब
फिर भी ये गुमाँ है की मेरी ही तरह तू भी बदगुमाँ रहा होगा
दर्द से भरकर जिस तरह छलकता है पैमाना मेरा
इसी तरह तूने भी अपना हर शेर कहा होगा।
#Manabi


















Thursday, June 18, 2015

रवीश को इस्तिफु का जवाब


मेरे प्यारे रवीश
हाँ मैं तुम्हे रवीश ही बुलाऊंगा ; तुमने कभी मुझे जानने की, समझने की कोशिश जो नहीं की।
बस दुसरो की जेब में मुझे ढूंढते रहते हो..कभी खुद भी मुझे अपनी जेब में, या दराज़ में ही रख लिया करो।
पिछले 19 साल से यही... इसी ndtv में लगे हुए हो। तुम क्या जानो राजनीति में नैतिकता के नाम पर मुझे दिए जाने का दर्द?
पांच दिन से तुम्हारे भाई बंधू मेरी मांग किये जा रहे है। कभी सोचा है की यूँही पहले की तरह मांगे जाने पर मैं तपाक से दिया जाता रहा तो मेरी क्या value रह जायेगी? नहीं न? अरे तुम क्यों सोचोगे भाई? तुम्हारी तो खुद की नज़रो में मेरी कोई value ही नहीं है। होती तो आज तक एक बार तो मुझे दिया होता। अच्छा बड़ा कहते हो की मुझे गूगल पर तुमने बहोत ढूंडा। बस रहने दो!! गूगल पर सच्चे दिल से ढूंढने से तो भगवान् और अडवाणीजी भी मिल जाते है, मैं तो फिर भी छोटा सा इस्तीफा हूँ। हाँ वही छोटा सा इस्तीफा जिसे राजकुमार अपनी जेब में लिए फिरते थे।
ना! मोटा तो मैं रत्तीभर भी ना हुआ हूँ। हाँ शातिर ज़रूर हो गया हूँ। इतने सालो में इतना तो तेज़ हो ही गया हूँ की कहाँ मांगे जाने पे दिए जाना है और कहाँ गुपचुप ही जेब में रह जाना है ये खूब समझता हूँ।
मैंने अपने पे लिखी हर कहानी पढ़ी है रवीश बाबू। जैनेन्द्र की भी और गजेन्द्र (किसान) की भी। फर्क सिर्फ इतना है की जैनेन्द्र की कहानी 1937 में लिखी जाने के बावजूद सबको याद है। उस त्यागपत्र को पढ़ तुम भी रोये थे और गजेन्द्र के जीवन से दिए त्यागपत्र को पढ़ सिर्फ मैं रोया था।हर त्यागपत्र के पीछे एक कहानी होती है मेरे दोस्त। तुम्हारे दफ्तर में दिए जाने वाले गुड बाय मेल की भी कोई कहानी होगी। पर उन्हें कोई नहीं पढता क्योंकि उनकी हफ्ता दर हफ्ता मांग नहीं होती।
खैर तुम्हारा पत्र मैंने दो बार पढ़ा जैसा तुमने कहा था। हंसी भी आई पर मैं हँसते हँसते कम ही निकलता हूँ ये तुम्हे पता होना चाहिए था। अक्सर मैं मायूस होकर ही निकल पाता हूँ।
मैंने तो तुम्हारा पत्र सब दोस्तों में शेयर किया। तुम भी मेरा ये जवाब शेयर करोगे न?
तुम्हारे हाथ से किसी दिन लिखे जाने की चाह रखने वाला
तुम्हारा
इस्तिफु :)

(रवीश जी का इस्तीफ़ू को पत्र कुछ इस तरह था....

इस्तीफ़ू तू बड़ा ही 'नॉटी गेम चेंजर' है - NDTV http://khabar.ndtv.com/news/blogs/ravish-kumar-dear-resignation-plz-read-my-letter-twice-773172 )