Wednesday, April 15, 2015

 आम्बेडकर जयंती.... 'नयी सड़क'... क्लास और कास्ट का फर्क



कल आम्बेडकर जयंती थी।  देश भर में दलितों के हक़ के विषय में बाते  की गयी।  रविश कुमार की  'नयी सड़क' और ndtv के 'प्राइम टाइम' की तरफ, देश के कई और देसी लोगो की भाँती, मेरा भी खास झुकाव है। प्राइम टाइम में कल  रविश जी ने, नितिन के कॅमेरे से आम्बेडकर जयंती का जश्न दिखाया।  शैनन नामक पत्रिकारिता की छात्रा के हाथो में iphone  और  आँखों में आँसू दिखाए।  एक महिला को आंबेडकर जी की तस्वीर खरीदते हुए दिखाया। रविश जी के पूछने पर महिला ने बताया की एक car में आलरेडी ये तस्वीर है , अभी दूसरी कार के लिए ले रही रही है। आज 'नयी सड़क' पर देखा तो शैनन की भावुक कहानी थी।

इसी तरह आमिर खान के 'सत्यमेव जयते' की भी मैं फैन रही हु।  जब पिछले सीजन के एक एपिसोड के विज्ञापन में आमिर ने कहा की वे निचली जाती के बारे में बात करेंगे तो मैंने प्रोग्राम से कुछ उम्मीदे बाँध ली।  जब एपिसोड आया तो उसमे भी केवल दलितों पर अत्याचार और उनके संघर्ष की कहानी  थी। उसके 
बाद की कहानी कही नहीं थी...

अभी कुछ समय पहले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के फलते फूलते लोगो से अपील की, कि वो अपना एक हक़ अपने कम फलते फूलते भाईयो के लिए त्याग दे।  सुनकर ख़ुशी हुई। पर पता चला प्रधानमंत्री जी तो बस एलपीजी में सब्सिडी की बात कर रहे है।  
काश स्वेच्छा से ये फलता फूलता वर्ग एक और हक़ छोड़ देता तो शायद देश में समानता की कुछ गुंजाइश बनती।

आज मेरी घरेलु मदतगार (maid ) अपनी बेटी को साथ लेकर आई।  सुबह  सुबह नींद से जागते ही खेलने के लिए किसी को पाकर मेरी बच्ची खूब खुश हुई।  दोनों ने साथ बैठ नाश्ता किया , T.V  देखा और खूब खेले।  वेणी को सिर्फ तमिल आती थी और मेरी बेटी मिष्टी को हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली। सो भाषा का थोड़ा अंतर रहा पर कुछ देर तक।  थोड़ी ही देर में दोनों ऐसे घुल मिल गयी जैसे वर्षो से जानती हो एक दूसरे को। 
मैं नहीं जानती की वेणी की जाती क्या है।  वेणी की माँ को मैंने बिना जाती पूछे ही नौकरी पर रखा था।  पर यदि वो सरकारी नौकरी मांगने जाती तो जाती पूछी जाती, वर्ण पूछा जाता।  और संभवतः उची जाती का होने की वजह से नौकरी से वंचित ही रखा जाता।
मेरा बचपन भी कुछ इसी तरह गुज़रा।  कॉलोनी के सारे बच्चे किसी न किसी के आँगन में रोज़  खेलते मिलते।  किसी की  क्या ज़ात थी ....  अब तक नहीं पता।  माँ बाबा ने न  कभी किसी के  साथ खेलने से रोका, न किसीका कुछ दिया खाने से और  न ही किसीके घर जाने से।  किसीकी कास्ट का  पता नहीं होता था , पर हाँ 'क्लास' का पता ज़रूर हो जाता था।  कभी किसी के पहनावे से तो कभी बड़ो के व्यवहार से। गुड़िया के पापा अफसर है और मेरे बाबा क्लर्क , ये फर्क तो बचपन में  खेल खेल में भी महसूस कर लिया था मैंने

अब शैनन के दुःख के साथ सहानुभूति रखते हुए ये किस्सा बताती हु जहाँ से मुझे कास्ट का ज्ञान हुआ।

बारवी में ठीक ठाक ही परसेंटेज  आये थे।  उन दिनों कोई एंट्रेंस नहीं होती थी इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए।  बारवी के नम्बरो के आधार पर एडमिशन होती थी।  बाबा का सपना था की उनके दोनों बच्चे इंजीनियर बने। दादा बन चुके थे और अब मेरी बारी थीं। 
नागपुर के V.R.C  में बैठे, मैं अपने नम्बर के इंतज़ार में थी।  तीन लोगो को एक साथ बुलाया गया।  स्क्रीन पर जनरल केटेगरी में सिर्फ मैकेनिकल और सिविल ही नज़र आ रहे थे।  दादा ने हिदायत देकर भेजा की मैकेनिकल ले लु।  

बातूनी तो मैं हूँ ही इसलिए मुझसे आगे जो लड़की खड़ी थी उस से युही पूछ लिया की "तुम सिविल लोगी या मैकेनिकल?"   जवाब आया, "मैं तो कम्प्यूटर्स लुंगी " . मुझे  लगा शायद उससे स्क्रीन देखने  में कोई चूक हुई है।  मैंने उसे बताया की " अरे तुम कौनसे खयालो में हो? नज़र उठाकर  देखो हमारे पर्सेंटेज के लिए सिर्फ सिविल और मैकेनिकल ही बचता है।"  वो हसी , बोली, "तुम जनरल केटेगरी  की हो क्या ? मैं तो S.T  हुँ।  मुझे तो L.E.T में इलेक्ट्रॉनिक्स  भी मिल रहा था पर मुझे कम्प्यूटर्स ही चाहिए :) " 

 फिर मैंने उससे उसके  परसेंटेज पूछे।  ओवरआल मुझसे २ परसेंट कम  और P.C.M  में मुझसे ५ पर्सेंट कम। सुनकर अनायास ही घृणा होने लगी उससे।
"हमारी तो फीस भी माफ़ हो जाती है , मेरी मम्मी प्राइमरी टीचर है न :) " - उसने कहा।
"wow  … और पापा? पापा क्या करते है तुम्हारे ? - मैंने  व्यंग में पूछा।
" डॉक्टर है।  Dr. वाघमारे (नाम बदला हुआ ) का नाम नहीं सुना ? जिनका अशोक चौक पर बड़ा सा हॉस्पिटल है , वो मेरे पापा है" - उसने उत्तर दिया।

उसका नंबर आ गया।  उसने नागपुर के एक  कॉलेज   में कम्प्यूटर्स ले लिया। ज़्यादा  नंबर होते हुए भी मेरे पास मैकेनिकल लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

मेरे पिता क्लर्क थे। पर वर्ण से क्षत्रीय।  क्लास का फर्क मैंने बचपन से सीखा था। ये वो किस्सा था जिसने मुझे कास्ट का फर्क सिखाया। 

2 comments:

  1. Hmmm... n it's almost a taboo to speak about it now in our country!! Sigh!!

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