Sunday, April 12, 2015

Darti hu...kahi tum mujhe kho na do...

 डरती हूं...कही तुम मुझे खो ना दोह...
हर सुबह निकल जाते हो तुम रोटी कमाने...
हां जानती हु इसके बगैर  गुजारा भी तो नही...
जो ब्रॅण्डेड गॉगल्स और जूते तुम्हे पसंद आते है...
उन सब के लिये तुम्हारा यु सुबह सुबह निकल जाना तो वाजीब है..

दिन मे कइ बार तुम्हारी याद आती है..
कभी कोई  गजल गुणगुणाते..
तो कभी कोई कहानी लिखते लिखते...
उँग्लिया तुम्हारे नंबर को दबाने ही लगती है की..
फिर याद आता है आज तुम्हारी कोई important meeting है..
नही...कॉल करके कही डिस्टर्ब ना कर दु तुम्हे...

कभी कभी तुम्हारा मन होता है तो 6:30 ही निकल आते हो..
मैं  रोज सोचती हु शायद आज वो दिन हो..
फिर जब 9:30 तक नाही आते तो पूछती हु.."क्या हुआ....निकले नही अभी?"
जवाब आता है "नही...काम है अभी"..
और तुम फिर रोटी कामाने लागते हो....

प्यार इतना है की उमर गज़ार दु ..चाहे तुम वक्त दो..ना दो
पर डरती हु...उमर  गुजरने से पहले ही ..कही तुम मुझे खो ना दो...

1 comment: